समाज जिसे पागल समझता है आज उसकी बात सुन कर शायद मर चुका मानवता जिंदा हो जाये ।

समाज जिसे पागल समझता है आज उसकी बात सुन कर शायद मर चुका मानवता जिंदा हो जाये ।


कुछ लोगों के साथ वो घूर ताप रहा था बहुत ही मिन्नतों के बाद समाज के तथाकथित बुद्धिजीवियों ने उसे घूर के एक साइड बैठने दिया था बहुत ही मारा मारा फिरता हुआ कहि से आ रहा था शरीर पर बस एक पुरानी सर्ट के सिवाय कुछ नहीं था आप सिर्फ अंदाजा लगा सकते है कि कितनी ठंड लग रही होगी उसे लेकिन आप बस अंदाजा लगा सकते हैं उसकी सहायता तो दूर की बात आप उसे अपने पास फटकने नही देते ।

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घूर के पास बैठने को मिलने के बाद वो अपने शरीर के हर भाग को सेक रहा था तभी कहि पास के एक गली से भींगा कुत्ता भी उस आग की तरफ सरपट दौड़ता चला आ रहा था शायद किसी ने उसके शरीर पर पानी उड़ेल दिया हो जाओ रे बुद्धजीवियों खुद तो इस ठंडक में कितने दिन पर नहाते हो उसकी गणना तो शायद ही याद हो तुम्हे लेकिन उस असहाय प्राणी उस जीव ने तुम्हारे आंगने में शायद एक रोटी के लिए ही गया हो और तुमने उसे अपनी मानवता दिखा दी ।

ठंढे पानी को झाड़ते हुए सरपट वो कुत्ता जैसे ही आग के करीब पहुचा की एक बुद्धिजीवी ने बिना देर किए पाँव के चप्पल को निकाल कर उस तरफ फेक दिया वो कुत्ता केकेकेके करते हुए दूसरे तरफ सरपट भाग गई तभी उसने जिसे समाज हाँ ये बुद्धिजीवी पागल कहते हैं उसने यह कहते हुए वहां से उठ बिदा हुआ कि ....की बिगड़ने छैयलाऊ किया मरलाही ...
(क्यों मारा क्या बिगाड़ा था )

शायद उसके दर्द को वही समझ सकता था एक वो जिसके पूरे बदन पर कुछ नही हो और दूसरा जिसके बदन पर एक फटा सर्ट ।

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