विवि० के पराव के समाप्त होने पर भी एक टिस सा रह गया ।।

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विवि० में कैसा रहा सफर का जबाब बस इस बात से अंत हो जाता है कि यह ऐसे प्यार की तरह था जिसे देखकर तो लगता है कि यह सिर्फ मेरे लिए है लेकिन कमबख्त यह उस जोक की तरह निकला जो आखिरी बून्द खून का प्यासा था।

खोखले नीवं पर इमारत खड़ी नही हुआ करती कुछ हद तक सटीक बैठती हैं यह हालाते यूनिवर्सिटी पर ।।


लेकिन किसी को नही पड़ी है कि विवि० में शिक्षा का स्तर क्या है ...

यहां तक कि उन्हें इस बात से भी कोई लेना देना नही होता कि विवि० के अंगीभूत इकाई कॉलेजों में भी सभी विषयों के शिक्षक है या नही उन्हें परवाह नहीं कि जो शिक्षक है वो कितने अपने वेतन का सही मायनों में हक़दार है ।

विवि० को लूट में कोई कसर नहीं छोड़ना है चाहें हर सेमेस्टर पैसों में बढ़ोतरी हो या किसी विषय मे नामांकन दाखिला में फीस की बढ़ोतरी ये लूट इनकी भूख पर निर्भर करता है, भूख इनकी ज्यादे होती है तो ये क्लास के क्लास बच्चों को प्रोमोट करने में भी पीछे नही हटते क्योकि फिर से फॉर्म भरने के पैसों पर जो टकटकी लगाए गिद्ध जैसी नजर गड़ाए  इनकी लालची आत्मा दांत गड़ाए रहती है ।


प्रोग्राम वगैरह में कोई कसर नहीं छोड़ना इनका धर्म रहा है ये धर्म अपनी पराकाष्ठा पर तब तक ही होता है जब तक पैसे इन तक जमा नहीं हो जाते फिर इनको क्या लेना देना की बच्चों को प्रोग्राम के बाद खाना मिला कि नहीं ये इनकी जिम्मेदारी में नही आती ।


पढ़ाई के नाम पर क्या होता है विवि० के सभी बच्चे भलीभांति परिचित है लेकिन गोल्ड मेडल देना फ़ोटो सूट होना न्यूज़ में आना इन सब मे कोई कसर नही रहे इसलिए बच्चों की कमर तोड़ देना ये भी इनकी आदतों में शामिल है ।


सत्र नियमितता की बात करे तो यह चंद सालों से ठीक-ठाक रहा है लेकिन जब बात इसकी करे कि कॉपी जांच कहाँ होता है कौन करता है तो मानों ये खुद की बेज्जती समझते है और पल्ला झाड़ते हुए ये कहना कि क्या सब सही हो सत्र तो नियमित हो गया है तो यही गाना जहन में चलने लगता है कि दिल के अरमा आंसुओ में बह गए और डिग्री ले कर भी हम सब मुर्ख रह गए ।।

इन सभी बातों से हमारे सभी तत्कालीन डिग्री धारक साथी नाराज हो जाएंगे लेकिन बात बिल्कुल भी यह नही है
है, हम जानते है कि आपने यूनिवर्सिटी को पैसे दिए है हर बार दिए है जब जब उसकी प्यासी आत्मा जगी है आपने हर बार पैसे से उसको बुझाया है लेकिन पढ़ाने के समय उसने सिर्फ पल्ले झारे है आप सभी डिग्री धारक खुद से बस खुद के मेहनत से यहां तक पहुँचे है लेकिन बात यह भी है कि ऐसी ही दिवानगी पैसों के प्रति विवि०का रहा तो शिक्षा धरती के भुगर्व में कहि दब जाएगी जो हमारे आने वाले साथियों की प्रति हम सबके बड़े होने का फर्ज के प्रति लापरवाही होगी ।

खुश हूं हमे भी M.SC होने पर सर्टिफिकेट भोज की पत्ते की तरह मिल गया और सभी साथियों को भी ।


भोज के पत्तो के तरह सर्टिफिकेट मिलने के बाद भी खुश होना लाजमी है वो इस विवि० के बच्चे जानते है ।


सभी गोल्ड मेडलिस्ट को आनेवाले भविष्य की शुभकामनाएं ।


दुःख इस बात का रहा कि जिस विवि० के थे उस विवि० में पढ़ाई कभी हुई ही नही यही दुखद सच है लोग बोलने से कतराते है लेकिन कटु सत्य यह भी है कि हैं बड़े गौरवान्वित होकर खुद के फोटो को शेयर पर शेयर कर यह बताया कि हम सब ने कितने बड़े वाले झंडे गाड़े हैं ।।


इस युग मे संजीवनी बूटी की तरह गूगल और यूट्यूब ने हम जैसे कितने को राह दिखाई नही तो शायद ....बस हम शायद और शायद ही रह जाते किसी बन्द कालिख कोठरी में बैठे एक जीव की तरह जिसे कही भी घूमने पर सिर्फ और सिर्फ काला ही काला दिखता ।।


नही तो खुद से पढ़ना पैसे विवि० को देना फिर प्रोमोट होना फिर पैसे विवि० को देना फिर दूसरे सेमेस्टर में जाना फिर पिछले सेमेस्टर में अपने मनमरजी से पहले से ज्यादे पैसे देना और सिलसिला लगातार निरंतर....


इस तरहे विवि० के पराव को पार करना कहीं ना कहि टिस सा रह जाना लगता है ।।


सोच मेरी, बातें मेरी, लेकिन आपबीती सबकी । 


आशा है कि आपको इसमें अपने विवि० के प्रति कहि वो चुड़ैल दिखे तो इसको शेयर जरूर करना शायद हमारी आपकी विवि० की हालत सुधरे ।

इसी आशा के साथ आपके भविष्य की मंगलकामना करता हुआ मैं ।। @thegauravmishra