गरीब बच्चों के लिए वरदान है सुपर 30 के आनंद कुमार ।

सुपर 30 के रूप में गरीब बच्चों को वो तिलस्मी महल मिला जिस से होकर उनके सपनों का सफर बहुत ही आसान हो गया जिस IIT के बारे लोगों को सोच कर ही बुखार 102 के पार पहुँच जाता हो, उसके बाद उस की तैयारी में लगने वाले लाखों रुपए के खर्चे गरीबों को IIT के बारे में सोचना भी अभिशाप लगने लगता हैं, उस सभी गरीब परिवार को एक नया रास्ता,एक नई उम्मीद मिला आनंद कुमार के रूप में ।।



आनंद कुमार का जीवन

 आनंद कुमार का जीवन एक मध्यम परिवार में हुआ था, रेलवे ट्रैक के किनारे एक छोटी सी रूम में सयुंक्त परिवार का जीवन किसी तरह गुजर बसर कर रहा था,पिता की नौकरी डाक विभाग में एक छोटी पद पर था जिस से उतनी ही तनख्वाहआ रही थी जिस से मरुस्थलमें पैसे को एक कप पानी जीवन जैसे तैसे चल रहा था,पिता के पास इतने पैसे नही थे की किसी बड़े या प्राइवेट स्कूल में नामांकन हो पाता इसलिए सभी सरकारी स्कूल से ही अपनी शुरुवाती शिक्षा लिया , घर में इतनी जगह नही था की सभी चीजों के साथ साथ बच्चे घर में बैठ कर पढ़ पाते इसलिए आनंद दिन-भर घर से बाहर एक अमरुद के पेड़ के निचे बैठ कर पढ़ते थे और रात में सभी भाइयों के साथ लालटेन के निचे बैठ कर |





कहा जाता की सफलता किसी की जागीर नही मेहनत करने वालों को देर सबेर मिल जाती है ऐसा ही हुआ  डीपी वर्मा जैसे लोगों ने आनंद का मार्गदर्शन किया उनकी मैथ के तरफ के रुझान को प्रेरित किया और आनंद ने ऐसे मैथ के फार्मूला की खोज कर दी जिसने एक नये ध्रुव तारा को प्रकाशमान कर डाला आनंद कुमार के उस फार्मूले को लंदन और अमेरिका के अच्छे-अच्छे जनरलस में छापा गया जिस से उनकी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जाने का रास्ता तय होगा लेकिन कालचक्र में कुछ और ही लिखा था.



कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला के बारे में सुन कर घर के लोग बहुत खुश हुए, घर में मानो खुशियां बेसुमार बरस रही हो माँ खुश होकर सबके लिए खीर बना लाई और भुद्नाभुदाने लगीं ना जाने कितने दिनों के बाद, याद भी नही की कब कुछ अच्छा बनाया था !



नियति को यह मंजूर नही था कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जाने की तैयारी कैसे हो घर में इतने पैसे नही की बेटे को लंदन भेजने के लिए फ्लाइट की टिकट का भी इंतजाम कर पाए लेकिन पिता तो पिता थे हार कहाँ मानने वाले थे सभी सगे सम्बन्धियों के आगे हाथ फैला ली लेकिन इस स्वार्थी दुनिया में कौन किसका हैं कहीं से मदद ना मिलने की दुःख पिता को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी , किसको बताये क्या बताये यही सब सोच रहे पिता अचानक मौन हो गये ना जाने कैसे और कब उनकी आत्मा इस निर्दय सामाज को छोड़ परमात्मा में विलीन हो गयीं!!

पिता के जाने के बाद पूरी जिम्मेदारी आनंद के कंधो पर था लेकिन माँ भी तो माँ थी उसने भी अपने बेटे के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जाने के सपनो को ना टूटने दिया उसने आनंद से कहा की क्यों ना तुम्हारी पढाई के बाद शाम को पापड़ बेचा जाए माँ पूरे दिन पापड़  बनाती आनंद शाम को उस पापड़ को गाँव-गाँव जा कर उसे बेचना शुरू किया जिस से की घर की हालत सुधरे लेकिन नियति उन्हें कही और ले जाना चाहता था घर के लोगों का और उनके भाई का आनंद पर विश्वास था.



कैसे हुई सुपर 30 की शुरुआत



आनंद के भाई प्रणव भाई की काबिलियत जानते थे उन्होंहे उन्हें प्रेरित किया कोचिंग शुरू करने के लिए और आनंद  स्लम के सभी गरीब बच्चो तक उन्होंने IIT की फ्री कोचिंग की बात रखीं और सभी बच्चों में से 30 बच्चो के चयन के बाद उन्होंने उनको पढ़ना शुरू किया लेकिन इन सब में उनकी माँ के साथ का बहुत योगदान हैं उनकी माँ ने सभी बच्चो को अपने यहाँ रख कर सभी के लिए खाना बनाती और सभी को बेटे के जैसे प्रेरित करती !



पहले साल 30 बच्चों में से 18 बच्चो ने IIT क्लियर किया ( आनंद कुमार की रिपोर्ट)और यह सिलसिलालगातार जारी है और हर साल बच्चे IIT में बैठते हैं और क्लियर करते हैं कभी यह संख्या २० होती है तो कभी 25 तो कभी 30 लेकिन यह सिलसिला अनवरत चालु हैं |



शिक्षा के जगत में कई अवार्ड से समानित हो चुके हैं आनंद कुमार





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