इनको आज भी हमारी चिंता है ||



आज भले हम इनसे कई पीढ़ी आगे चल रहे हो, आज भले हम सड़क पर फरारी लैंबोर्गिनी होंडा सिटी या बजाज ही दौरा रहे हो इनमे भी कई साल इनसे आगे हो जबकि ये आज भी एक टहनी से दूसरे टहनी पर कूद फांग कर जा रहे हों ।

भले आज हमारे पास पानी, धूल हवा से बचने के लिए मकान हो भले हम कुछ बोना सीख गए जिससे हमें सब्जी धान फल खाने को मिल रहा हो इनकी तरह नही की कुछ तोड़ कर खाना पड़े ।

लेकिन लेकिन लेकिन ये हमारे ही पूर्वजों की तरह मिलते जुलते है या यूं कहें कि हजारों साल पहले के हम है तो फिर क्यों ना इनको हमारी चिंता हो क्यों ना ये भी हमारे बारे में सोचे ।।

तो आज जब पूरी पटना डूब गई थी बहुत सारे सश्क्त व्यक्ति जिनको हमारी चिंता होनी चाहिए थी वो हमें हमारे हाल पर छोड़ कर चले गए उस स्थिति में हमारे आपके पूर्वजों के प्रजाति जिन्हें हमारी चिंता है वो इनकी निरक्षण में लगे हुए हैं ।।

तो क्या कहेंगे .....
या ये कहने में संकोच नही होना चाहिए कि हमारे प्रतिनिधि इनसे भी पीछे है जो भले ही इनकी पोशाक से बदल कर हमारी आपकी पोशाक पहन लिए हो लेकिन इनकी आज भी एक कुरीति कहे या समानता इनसे मिलती जुलती है जो यह है कि ये अपने फायदे के लिए कुद कर कही भी जा सकते है कुछ भी कर सकते हैं ।।

Gaurav Mishra कलम से .....।।

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