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| Gaurav Mishra |
बिहारी होना और बिहार में रहना वाकई बहुत संघर्ष भरा है !!
एक ऐसे प्रदेश में रहना जहां मौलिक अधिकार जीरो बट्टा सन्नाटा के बराबर हो और मूलभूत सुविधाओं के नाम पर बस हवा हवाई बातों का अंबार, शिक्षा की बात करना छोटे बच्चों की निवाला छीनना होगा क्योंकि स्कूलों में पढ़ाई बाद में होगी चलेगा बच्चों को खिचड़ी पहले मिलना चाहिए, टीचर्स बच्चों की पढ़ाई की बात बाद में करेंगे चलेगा खिचड़ी के लिए चावल और दाल का जुगाड़ पहले करना अनिवार्य है ।
स्वास्थ्य की बात तो पूछों ही मत हर साल सैकड़ो बच्चे बलि के बकड़ें की तरह भेंट चढ़ जाए लेकिन सरकार को इस से क्या, सभी साल ऐसे मरते है मरने वालों को किसने रोका हैं। ये बात इनसे पूछ लो बस ! ये कहेँगे गर्मी बहुत बढ़ गयी है जैसे ही गर्मी कम होगा मरने वाले बच्चों में कमी आ जायेगी । लेकिन इसकी रोकथाम कैसे हो यह मत पूछना क्योकि इस पर वो यह भी कहने में देर नही करेंगे कि तुम्हारे बच्चे है तुम सोचों ।
अब बाढ़ ने तो इनकी धज्जियां उड़ा दी इनकी अभी तक के विकास मॉडल को उजागर कर दिया यह दिखा दिया कि पिछले 13 सालोँ में बिहार में विकास कितना बड़ा हुआ हैं , मैं बताता हूँ इतना बड़ा हुआ है कि प्रदेश की राजधानी के सड़को पर आप स्विमिंग पूल के मज़े ले सकते हों, तैरती प्लास्टिक और कचरे आपके घर मे आराम से आ सकते हैं!
बात यह नही है बात यह है कि सरकार जब इस बात से आश्वस्त हो कि लोगों के सामने उसके बदलने के विकल्प नहीं है तो वो खुली सांढ़ की तरह सिंघ मारेगी ही, बकड़ी की एक प्रजाति बोतों की तरह मेम्म्मेम्ह कर के चिढायेगी ही !!
इतने सब बातों के बाबजूद जब सरकार यह बात कहें कि क्यों करे विचार ठीके तो है नीतीश कुमार तब मत पूछिये मेरा शरीर मे बालों की एक प्रजाति जो खिसियाने पर जलने लगती है तो वहाँ जरूर मुझे जलन होने लगी हैं।
रही बात सरकार के विकल्प की तो अपने बिहार की यह कहावत आपने सुनी ही होगी कि समय आने पर गधे को भी बाप बनाया जा सकता है तो सोच लीजिए देख लीजिए या पोटिया माछ की तरह बार-बार बोर खाते रहिये इन सब बातों से निश्चिंत होकर की कोई दाना आपको फांसने के लिए दे रहा हैं ।
ये हमारे अपने विचार है, मेरे द्वारा कहें बात से गधे,माछ ,या बकड़ी किसी भी प्रजाति को ठेस पहुंची हो तो तुम दो रोटी ज्यादे खाना ।।
Gaurav Mishra
