तुम्हें किस सवाल ने सबसे ज्यादा विचलित किया कुंती
प्रथम संतान को कभी नहीं अपना पाने की पीङा या द्रौपदी को वस्तु की तरह अपने पांचों पुत्रों में बांटना... क्योंकि स्त्री तो तुम भी थी ...तो द्रौपदी की पीङा को समझ तो तुम भी गई होगी ..फिर भी तुमनें ये निर्णय क्यों लिया... या शायद तुम ने अपने पांचों पुत्र के आंखों में द्रौपदी को पाने की लालसा दिख गई थी और तुम डर गई थी भविष्य में टकराव ना हो जाये भाइयों में...इस डर को समाप्त करने के लिए तुमनें द्रौपदी को वो डोर बना दी जिसनें सबको एक सुत्र में बांध दिया.. पर इन सब में उसकी पीङा को अनदेखा कर दिया सबने... सब तो पुरुष थे पर तुम तो स्त्री थी तुमने कैसे नजरअंदाज कर दिया।
आखि़र तुम्हें भी तो बार बार संतान प्राप्ति के लिए पर पुरूष से याचना करनी परी थी वो भी पांडु के कहने पर।वो पांडु जो तुम्हारे पति तो थे पर तुम्हें संतान सुख नहीं दे सकते थे और समाज के ताने सहने की क्षमता उनमें भी नहीं थी।इसलिए उन्होंने तुम्हें परपुरुष गमन से संतान पाने को बाध्य किया।पीङा तो हूई होगी तुम्हें... आत्मा तो तुम्हारी भी छटपटाई होगी.. फिर भी ऐसा निर्णय तुम ने कैसे लिया..या शायद तुमने अपनी आत्मा को चिर निद्रा में सुला दिया था..इसलिए बहुत आसान था तुम्हारे लिए ऐसे निर्णय लेना।
सवाल तो कई हैं पर जबाब कोई नहीं.. या हैं भी तो इस पुरुष प्रधान समाज ने जरूरत नहीं महसूस की कभी देने की..काश वो रास्ता तुम बतला कर जाती अपने आने वाली पीढी को जिससे तुम ने अपनी आत्मा के सवालों को शांत किया होगा.. तो हम भी अपनी जिज्ञासाओं को शांत कर लेते।
प्रश्न अनुतरित हैं कुंती और अनुत्तरित ही रहेंगे..
क्योंकि जबाब सुनने और कहने का साहस ना तब समाज में था और ना अब है...गांधारी नें आंखों पर पट्टी बांधकर जितना अन्याय किया उतना ही तुमने किया अनदेखी पट्टी मुंह पर बांध कर..तुम भी गुनहगार हो समय और समाज की..और उस से भी बढ़ कर स्त्री के प्रति ...
सवाल और सिर्फ सवाल खङी है.. हमारे सामने कुंती ।
Leena jha के कलम से ।
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