"मेरी तन्हाई और तुम्हारी याद"

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मेरी तन्हाई और तुम्हारी याद
दोनों ने साज़िश कर ली है मेरे ख़िलाफ़
जब भी मैं तन्हा होता हूं  
वो आ बैठती हैं मेरे पास  
करने लगती हैं बेइंतहा बातें   
कभी अपनी तो कभी जहां की बातें  
कभी छुपा लेती है अपने चेहरे को  
अपनी ही ज़ुल्फ़ों के ओट तले  
कभी निहारती है मुझे  
अपने अनुराग भरे पलकों के तले 
ले लेती हैं मेरे बोसे  
और फेरती है उंगलियां अपनी  
मेरे माथे के शिकन पर  
ये दूर नहीं होतीं मुझसे  
जैसे तुम हो जाती हो  
पर वो सुकून नहीं मिलता इनसे  
जो तुम दे जाती हो अपने साथ  
मेरी तन्हाई और तुम्हारी याद ।।
                Leena jha के कलम से ...

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